लखनऊ/20 जुलाई 2016
उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयोग में
महिलाओं के यौन उत्पीडन के मामलों की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा विशाखा
मामले में दिए निर्देशानुसार एक समिति बनाने और सभी सूचना आयुक्तों द्वारा की जाने
वाली सुनवाइयों की कार्यवाहियों की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग की मुकम्मल व्यवस्था की
मांग को पूरा कराने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में लखनऊ के
सामाजिक संगठन येश्वर्याज सेवा संस्थान द्वारा दायर की गयी एक याचिका पर सुनवाई
करते हुए अमरेश्वर प्रताप शाही और डा. विजय लक्ष्मी की संयुक्त पीठ ने याची संस्था
येश्वर्याज को इन दोनों मांगो के सम्बन्ध में राज्य सूचना आयोग में प्रार्थना पत्र
देने की सलाह देते हुए याचिका को निस्तारित कर दिया है.
पीठ ने येश्वर्याज द्वारा उठाये गए इन
दोनों मुद्दों को प्रशासकीय मुद्दा अवधारित करते हुए कहा कि नियमों में इन दोनों
मुद्दों के सम्बन्ध में कोई व्यवस्था नहीं है और यह भी कि मुख्य सूचना आयुक्त
प्रशासकीय रूप से इन दोनों मामलों का निपटारा कर सकते है जिनको येश्वर्याज द्वारा
मुख्य सूचना आयुक्त के संज्ञान में लाया जा सकता है और मुख्य सूचना आयुक्त इन
मुद्दों का समुचित निपटारा कर सकते हैं.
येश्वर्याज की सचिव और सामाजिक कार्यकत्री
उर्वशी शर्मा ने बताया कि उन्होंने उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए अपनी
दोनों मांगों को लिखते हुए मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी को बीते शनिवार को पत्र
भेज दिया है.
बकौल उर्वशी उनके
संगठन के संज्ञान में विगत कई वर्षों से यह तथ्य आ रहे हैं कि आरटीआई
प्रयोगकर्ताओं द्वारा यूपी के लोक प्राधिकरणों के भ्रष्टाचार से सम्बंधित सूचना
मांगने के मामलों के आयोग में आने पर उत्तर प्रदेश के सूचना आयुक्त राज्य सरकार के
एजेंटो के रूप में कार्य करते हैं और ऐसी सूचनाएं सार्वजनिक होने से रोकने के
दुरुद्देश्य से आरटीआई प्रयोगकर्ताओं, जिनमें महिलायें भी शामिल हैं,के साथ अपने
स्टाफ और सुरक्षाकर्मियों के साथ मिलकर दुर्व्यवहार तो करते ही हैं,साथ ही साथ
उलटे इन्हीं पीड़ित आरटीआई प्रयोगकर्ताओं
को ‘सरकारी कार्य में बाधा डालने’ और ‘सूचना आयुक्तों से दुर्व्यवहार’ करने जैसे
आरोप लगाकर पुलिस कार्यवाही करा देते हैं. उर्वशी के अनुसार lयूपी के सूचना आयुक्त आरटीआई एक्ट को जानते तो
नहीं ही हैं और यदि कोई आरटीआई आवेदक एक्ट के प्राविधानों का जिक्र करते हुए सूचना
दिलाने की मांग करता है तो सूचना आयुक्त उस पर ‘आरटीआई का धंधेबाज’ और ‘ब्लैकमेलर’
होने जैसे आरोप लगाकर आवेदक द्वारा सुनवाई के दौरान बहस करने के संवैधानिक अधिकार
को स्वयं पर ‘बेजा दबाब’ बनाने की संघ्या
देते हैं और उसे बेइज्जत करके सुनवाई कक्ष से निकाल देते हैं. उर्वशी के अनुसार आम
आरटीआई आवेदकों को इन समस्याओं से निजात दिलाने के लिए ही उन्होंने यह याचिका उच्च
न्यायालय में दायर की थी. l
उर्वशी ने बताया कि यदि उनके इस प्रार्थना
पत्र पर 1 माह में कोई ठोस कार्यवाही कर उन्हें सूचित नहीं किया गया तो वे जावेद
उस्मानी के खिलाफ उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दायर करेंगी.
No comments:
Post a Comment