लखनऊ / गुरूवार, 01 सितम्बर 22 …………
कांग्रेस की सरकारें भले ही खुद को अल्पसंख्यकों का मसीहा मानती रही हो पर जब बात धरातल पर अल्पसंख्यकों के हितों को संरक्षित करने की आती है तो भारतीय जनता पार्टी की सरकारें बाजी मारती नज़र आ रही हैं. केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में चल रही बीजेपी सरकार की ‘सबका साथ, सबका विकास’ की नीति साल 2014 में सत्ता परिवर्तन होते ही मूर्त रूप लेने लगी थी. तभी तो साल 2014 से ही देश में अल्पसंख्यकों के उत्पीडन के मामलों में अचानक एक दम से कमी आ गई थी जो आगे के वर्षों में भी बनी रही है. ये दावा यूपी की राजधानी लखनऊ निवासी समाजसेविका और आरटीआई एक्टिविस्ट ने अपनी एक आरटीआई अर्जी पर भारत सरकार के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अवर सचिव एवं केन्द्रीय जन सूचना अधिकारी ए. सेनगुप्ता द्वारा दिए गए जवाब के आधार पर किया है.
उर्वशी कहती हैं कि अगर हम साल 2006-07 से 2013-14 तक के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के 8 वर्षों को देखें तो साल दर साल क्रमशः 2016,1508,2250,2268,2375,2439,2127 और 2639 शिकायतें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग में दर्ज कराई गईं जबकि 26 मई 2014 को केंद्र में सत्ता परिवर्तन के बाद अगर हम साल 2014-15 से 2021-22 तक के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के 8 वर्षों को देखें तो साल दर साल क्रमशः 1995,1973,1647,1498,1871,1670,1463 और 2076 शिकायतें ही राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग में दर्ज हुईं हैं.
उर्वशी कहती हैं कि जहाँ मनमोहन सिंह के कार्यकाल के अंतिम 8 वर्षों में अल्पसंख्यक उत्पीडन की 2202.75 शिकायत प्रतिवर्ष के औसत से कुल 17622 शिकायतें दर्ज हुईं तो वहीँ नरेंद्र मोदी के आरंभिक 8 वर्षों में अल्पसंख्यक उत्पीडन की 1774.125 शिकायत प्रतिवर्ष के औसत से कुल 14193 शिकायतें ही दर्ज हुईं हैं. इन आंकड़ों के आधार पर उर्वशी ने दावा किया है कि इस प्रकार कांग्रेस सरकार के मुकाबले बीजेपी सरकार के समय में अल्पसंख्यक उत्पीडन की शिकायतों में लगभग 20 फीसदी की कमी आई है और अब यह मामले घटकर लगभग 80 फीसदी ही रह गए है.
अरुनव सेनगुप्ता ने उर्वशी को यह भी बताया है कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन साल 1993 में हुआ था लेकिन साल 1993 से लेकर 2006 तक के आंकड़े आयोग में उपलब्ध नहीं हैं. सेनगुप्ता द्वारा दी गई सूचना के अनुसार हालिया साल 2022-23 में बीते 08 अगस्त तक आयोग में 887 मामले दर्ज हुए हैं.
अरुनव सेनगुप्ता ने उर्वशी को यह भी बताया है कि साल 2009-10 से 2022-23 तक आयोग को क्रमशः 5.28,5.26,5.65,6.36,5.63,7.30,7.56,7.66,8.40,8.62,9.30,11.00,12.00 और 12.70 करोड़ रुपयों का बजटीय आबंटन किया गया है जिसमें से वर्तमान वितीय वर्ष में बीते 08 अगस्त तक अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा 4.37 करोड़ रुपये स्वीकृत हो चुके हैं.
बजट के आंकड़ों के आधार पर उर्वशी कहती हैं कि बीजेपी सरकार ने सत्ता में आने के बाद अल्पसंख्यक आयोग के बजट में उत्तरोत्तर वृद्धि ही की है जबकि पूर्व की कांग्रेस सरकार ने साल 2009-10 के मुकाबले साल 2010-11 में आयोग का बजट घटाया था और पुनः साल 2012-13 के मुकाबले साल 2013-14 में आयोग का बजट घटाया था जो अल्पसंख्यक प्रेम पर कांग्रेस सरकार की कथनी और करनी के अंतर को आंकड़ों के आधार पर सामने ला रहा है.
एक्टिविस्ट उर्वशी ने नरेंद्र मोदी को भारतीय संविधान का एक ऐसा सच्चा संरक्षक बताया है जो पूरे समाज और देश को साथ लेकर चलने की बात मात्र कहते नहीं हैं अपितु उसे करते भी हैं. अल्पसंख्यक उत्पीडन के मामलों में कमी लाने के लिए उर्वशी ने केंद्र की बीजेपी सरकार को सार्वजनिक धन्यवाद भी ज्ञापित किया है.
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